कबीर माया मोहनी मोहे जाँण सुजाँण मीनिंग Kabir Maya Hohani Mohe Jaan Sujaan Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit (Hindi Bhavarth/Arth)
कबीर माया मोहनी, मोहे जाँण सुजाँण।
भागाँ ही छूटै नहीं, भरि भरि मारै बाँण॥
Kabir Maya Mohani, Mohe Jaan Sujaan,
Bhaga Hi Chhute Nahi, Bhari Bhari Maare Baan.
कबीर माया मोहनी, मोहे जाँण सुजाँण।
भागाँ ही छूटै नहीं, भरि भरि मारै बाँण॥
Kabir Maya Mohani, Mohe Jaan Sujaan,
Bhaga Hi Chhute Nahi, Bhari Bhari Maare Baan.
कबीर माया मोहनी मोहे जाँण सुजाँण मीनिंग Kabir Maya Hohani Mohe Jaan Sujaan Meaning Kabir Dohe कबीर दोहा हिंदी शब्दार्थ Kabir Doha Hindi Word Meaning (Hindi Shabdarth/Arth)
कबीर माया मोहनी : कबीर साहेब कहते हैं की माया मोहित करने वाली है, माया ही फांस है.
मोहे : मोह लेती है.
मोहे जाँण : ज्ञानी को, विवेकशील को भी.
सुजाँण : सुजान, चतुर.
जाँण : ज्ञानी.
सुजाँण : परम ज्ञानी, विवेकी पुरुष.
भागाँ ही छूटै नहीं : भागने पर भी पीछा नहीं छोडती है.
भरि भरि मारै बाँण : भर भर के/कस कस के मोह के बाण मारती है.
मोहे : मोह लेती है.
मोहे जाँण : ज्ञानी को, विवेकशील को भी.
सुजाँण : सुजान, चतुर.
जाँण : ज्ञानी.
सुजाँण : परम ज्ञानी, विवेकी पुरुष.
भागाँ ही छूटै नहीं : भागने पर भी पीछा नहीं छोडती है.
भरि भरि मारै बाँण : भर भर के/कस कस के मोह के बाण मारती है.
कबीर माया मोहनी मोहे जाँण सुजाँण मीनिंग Kabir Maya Hohani Mohe Jaan Sujaan Meaning Kabir Dohe कबीर दोहा हिंदी मीनिंग Kabir Doha Hindi Meaning (हिंदी अर्थ/भावार्थ)
माया मोहित करने वाली है, माया सभी को मोहित कर देती है. यह ज्ञानी और परम ज्ञानी सभी को मोहित कर देती है. जो तत्व के ग्यानी हैं वे भी माया के वश में ही लगे रहते हैं. परम ज्ञानी और तत्व दर्शी भी इससे बच नहीं सकते हैं. भागने के प्रयास करने पर भी माया व्यक्ति का पीछा नहीं छोडती है और उसे अपने जाल में फांस लेती है. भाव है की माया से बच पाना संभव नहीं है.
अतः इश्वर में ध्यान लगाकर सद्मार्ग पर अग्रसर होना ही माया से विमुख होने की राह है. माया कस कस कर मोह और तृष्णा के बाण साधक पर मारती है. प्रस्तुत साखी में विशेसोक्ति अलंकार की व्यंजना हुई है.
विशेषोक्ति अलंकार : जहां पर कारण के होने पर भी कार्य न हो, कारण के होने का परिणाम पर कोई प्रभाव ना पड़े, वहां विशेषोक्ति अलंकार होता है।
विशेषोक्तिरखणेषु कारणेषु फलावचः
समस्त कारणों के होने के उपरान्त भी फल की प्राप्ति ना हो, वहां विशेशोक्ति अलंकार होता है.
फूलइ फलइ न बें, जदपि सुधा बरसहिं जलद ।
मूरख हृदय न चतें, जौ मुरू मिलई विरंचि सम।।
दो दो मेघ बरसते मैं प्यासी की प्यासी।
नीर भरे नित प्रति रहै, तऊ न प्यास बुझाई।।
आप देखिये की निचे के उदाहरण में कारण के होने के बावजूद भी परिणाम की प्राप्ति नहीं हो पा रही है,
नीर भरे निसिदिन रहें तऊ न प्यास बुझाय.
पानी बिच मीन पियासी-प्यास बुझाने के लिए प्रयाप्त पानी है लेकिन फिर भी मछली प्यासी है.
देखो दो-दो मेघ बरसते मैं प्यासी की प्यासी-मेघ बरस रहे हैं लेकिन प्यास नहीं बुझ रही है.
लागन उर उपदेश जदपि कहियो सिव बार बहु-शिव के समझाने पर भी समझ में नहीं आ रहा है.
निद्रानिवृत्तावुदिते रत्ने सखीजने द्वारपदं पराप्ते,
श्लथीकृताश्लेषरसे भुजङ्गे चचाल नालिङ्गनतोऽङ्गना सा ।।
कर्पूर इव दग्धोऽपि शक्तिमान् यो जने जने ।
नमोऽस्त्ववार्यवीर्याय तस्मै मकरकेतवे ।।
सः एकस्त्रीणि जयति जगन्ति कुसुमायुधः ।
हरताऽपि तनुं यस्य शम्भुना न वलं हृतम् ।।
अतः इश्वर में ध्यान लगाकर सद्मार्ग पर अग्रसर होना ही माया से विमुख होने की राह है. माया कस कस कर मोह और तृष्णा के बाण साधक पर मारती है. प्रस्तुत साखी में विशेसोक्ति अलंकार की व्यंजना हुई है.
विशेषोक्ति अलंकार : जहां पर कारण के होने पर भी कार्य न हो, कारण के होने का परिणाम पर कोई प्रभाव ना पड़े, वहां विशेषोक्ति अलंकार होता है।
विशेषोक्तिरखणेषु कारणेषु फलावचः
समस्त कारणों के होने के उपरान्त भी फल की प्राप्ति ना हो, वहां विशेशोक्ति अलंकार होता है.
फूलइ फलइ न बें, जदपि सुधा बरसहिं जलद ।
मूरख हृदय न चतें, जौ मुरू मिलई विरंचि सम।।
दो दो मेघ बरसते मैं प्यासी की प्यासी।
नीर भरे नित प्रति रहै, तऊ न प्यास बुझाई।।
आप देखिये की निचे के उदाहरण में कारण के होने के बावजूद भी परिणाम की प्राप्ति नहीं हो पा रही है,
नीर भरे निसिदिन रहें तऊ न प्यास बुझाय.
पानी बिच मीन पियासी-प्यास बुझाने के लिए प्रयाप्त पानी है लेकिन फिर भी मछली प्यासी है.
देखो दो-दो मेघ बरसते मैं प्यासी की प्यासी-मेघ बरस रहे हैं लेकिन प्यास नहीं बुझ रही है.
लागन उर उपदेश जदपि कहियो सिव बार बहु-शिव के समझाने पर भी समझ में नहीं आ रहा है.
निद्रानिवृत्तावुदिते रत्ने सखीजने द्वारपदं पराप्ते,
श्लथीकृताश्लेषरसे भुजङ्गे चचाल नालिङ्गनतोऽङ्गना सा ।।
कर्पूर इव दग्धोऽपि शक्तिमान् यो जने जने ।
नमोऽस्त्ववार्यवीर्याय तस्मै मकरकेतवे ।।
सः एकस्त्रीणि जयति जगन्ति कुसुमायुधः ।
हरताऽपि तनुं यस्य शम्भुना न वलं हृतम् ।।
श्रेणी : कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग
कबीर माया मोहनी मोहे जाँण सुजाँण मीनिंग Kabir Maya Hohani Mohe Jaan Sujaan Meaning Kabir Dohe