जब दिल से धुआं उठा
बरसात का मौसम था
सौ दर्द दिए उसने
जो दर्द का मरहम था
बरसात का मौसम था
सौ दर्द दिए उसने
जो दर्द का मरहम था
हमने ही सितम ढाए
हमने ही कहर तोड़े
दुश्मन थे हम ही अपने
औरों में कहां दम था
मिलता है जो किस्सों में
वो प्यार दिया तूने
हम फिर भी रहे खाली
हम फिर भी रहे सूने
दो बूंद की बारिश तू
हम प्यास थे सहरा की
जितना ही तुझे पाया
उतना ही हमें ग़म था
दुश्मन थे हम ही अपने
औरों में कहां दम था
कोई आधा अधूरा सा वादा
हमें याद आया
खत लिखने तुझे बैठे
क्या क्या हमें याद आया
लिखा तो बहुत कुछ था
पर भेजा नहीं हमने
छू के जो ज़रा देखा
कागज वो बहुत कम था
दुश्मन थे हम ही अपने
औरों में कहां दम था