फुरक़तों ने तो हमें इस क़दर जान लिया
दर्द से जो दोस्ती हुई वो भी बेनज़ीर हुई
हिज्र के ख़ज़ानों में बेपनाह इज़ाफ़त है
सोज़-ओ-ग़म, रंज-ओ-मलाल — ज़िंदगी अमीर हुई
दर्द से जो दोस्ती हुई वो भी बेनज़ीर हुई
हिज्र के ख़ज़ानों में बेपनाह इज़ाफ़त है
सोज़-ओ-ग़म, रंज-ओ-मलाल — ज़िंदगी अमीर हुई
दिल की इक ख़्वाहिश को वक़्त ने दीवाना किया
दरगुज़र करके उन्हें ख़ूब नज़राना किया
असर-ओ-अंजाम तो जो तय हुए वाजिब हैं
हसरतें निशाना बनीं, बेदिली जो तीर हुई
गुलकदों में जो रहे हमनशीं बहारों के
फलक-ए-उल्फ़त में भी थे राज़दाँ सितारों के
गर्दिशों में भी उन्हें दिखती है रानाई
शफ़्क़तें ऐसी मिलीं, तारीगी जागीर हुई
वस्ल के तख़य्युल भी जैसे नाराज़ हुए
उम्दा एहसास थे, पर नज़रअंदाज़ हुए
ख़्वाब-ए-मसरूर भी तो अब नहीं आते हमें
जैसे तनहाई ही अब सबसे दिलपज़ीर हुई
सज्दे जो हो न सके, उनकी कुछ बात करें
दिल-शिकन दरगों से चलिए मुलाक़ात करें
सुख़नराई करें सदमों की सियाही से
क़लम-ए-सरताज तो अब ख़ूब दिलगीर हुई