अपन आ गए क्या
भसड़ वाली जिंदगी
सब हवा टाइट है
दादर में ऑफिस है पर
घर तो वसई में
गर्दी के लोचे में
दिमाग का शॉट है
बस स्टॉप से ऑटो तक
हर जगह लंबी लाइन है
अटके शहर में
हम सबके सपने
हसल के ठोकर से
आगे लड़ने की फ़ाइट है
कोपचे वाली कमरे से
ऑफिस की बिल्डिंग तक
बॉलीवुड के लफड़े में ही
मुंबई का वाइब है
कैसा ये जंगल है
आई हूं मैं क्यों इनमें
जेबे तो खाली हैं
महँगे बड़े हैं सपने
कन्फ्यूजन ये है
कि जाना है कहाँ मुझे
मुझको नहीं है ये पता
घिस-घिस के
घिस-घिस के मेहनत तो करेंगे
यहीं अपना सीन है
लटकेले अटकले थोड़े से सटकेले
दुनिया रंगीन है
फंस गए तो धँस गए पर
रिश्क तो भी करना है
फिल्मी झमेले से आगे तो बढ़ना है
रोज़ का ही लड़ना है
ऊपर ही चढ़ना है
कोई भी आये
बिना जी के नी मरना है
(उलझी हुई हूं मैं..)
बॉलीवुड के लफड़े में ही
मुंबई का वाइब है