नाज़ुक सी दूर है
रखना संभाल के
कांच की कटोरी है
फिसले ना हाथ से
रखना संभाल के
कांच की कटोरी है
फिसले ना हाथ से
मानी हर बात है
तूने कहीं थी जो
फिर भी क्यूं दूर है
राहें रे
दायरे दायरे तेरे मेरे
क्यों दरमियान आए रे
डायरे… डायरे तेरे मेरे
क्यों दरमियान आएं रे
खाली पन्नो पे बस
नाम तेरा और मेरा लिखा जाए रे
कहते है सारे बस
एक यहीं हम एक दूसरे के सारें रे
मेरे हर गम को
तू ही मिटाए रे
फिर क्यों तू ही दिल
ये मेरा अब यूं दुखाएं रे
दायरे दायरे तेरे मेरे
क्यूं दरमियान आयें रे
दायरे…दायरे तेरे मेरे
क्यूं दरमियान आये रे
यादों से अब नहीं
भर सके ये घाव रे
चाहिए इन्हें बस तेरी ही छाँव रे
ऐसी भी क्या भला
हो गई है बात रे
बात करके भी जो मिटे ना दयारे
दयारे …दायरे तेरे मेरे
क्यों दरमियान आयें रे
दयारे…दायरे तेरे मेरे
क्यों दरमियान आयें रे