और इनको लगता मैं चिराग घिस रहा हूँ
इनको लगता की मैं फ्लोज़ पॉकेट बार्स लिखता हूँ
पर मैं किताब लिखता हूँ
लिखने में बाप जितना हूँ
अंदर भूख इतनी है पूरा पहाड़ निपटा दूँ
मुझे बाज़ार की समझ में व्यापार सीखता हूँ
आंसू देने वाला शायद से समंदर लेकर बैठा
माँ को बुरा लगता है जब मैं लाचार दिखता हूँ
गाड़ी चलानी आती नहीं
मुझे घर चलाना आता है
फिर मिडल क्लास लड़का एक दिन
ज़लज़ला ले आता है
जीत का एहसास ही सरद हवा दे जाता है
रोंगटे खड़े गला भारी
हर जगह पे छा रहा मैं
बुरा देखा बुरा सुना बुरा किया नहीं
काफिर हुआ माँ की दुआ तभी रुका नहीं
जितना लिया दुगना दिया किया गुनाह नहीं
सभी का प्यार सब के बिना हुआ पूरा नहीं
बुरा देखा बुरा सुना बुरा किया नहीं
काफिर हुआ माँ की दुआ तभी रुका नहीं
जितना लिया दुगना दिया किया गुनाह नहीं
सभी का प्यार सब के बिना हुआ पूरा नहीं
काफी बदल सा गया था मैं
राही भटक सा गया था मैं
हाँ जी अब सब कुछ ही कदमों में है
हो… राहें सूनी पड़ी थी
निगाहें शिखर पे अड़ी थी
पर बाद में अब लगता हम सपनों में हैं
देना है साथ तो फिर साथ देना फ़लक तक का
मेरी हर बात पे ना मुस्कुरा और पलक झपका
माँ बोली अब तेरा रवाईया थोड़ा अलग लगता
खैर माँ तो माँ है
उससे अच्छा कोई नहीं समझ सकता
घर से दूर रहके सब के दिल में घर किया
अदाकार ठीक नहीं पर अदा मैंने फर्ज़ किया
दिल में बसा इश्वर नहीं तो मंदिर मस्जिद चर्च क्या
दुनिया की नज़रों में रोने वाला व्यक्ति मर्द क्या
वो नमक लेकर आए सारे बर्फ की जगह
हमने बहुत समझाया और उनपे तर्क नहीं बचा
तू ने झूठी क़समें खा ली अपने माँ बाप की
फिर मेरे भाई तेरे गलत में
कुछ गलत नहीं बचा
मुझे मूवी देखना पसंद नहीं
मैं खुद की बना रहा हूँ
बोले शोहरत पैसा दलदल है
तो मैं डुबकी लगा रहा हूँ
कभी दिल्ली कभी कोटा
कभी रूड़की मचा रहा हूँ
म्यूजिक मुझे बनाता है
ना की मैं म्यूजिक बना रहा हूँ
पढ़ने की उम्र में रहा चूड़ियाँ था बेच
सब कुछ खो दिया बचा है केवल सुई धागा शेष
मंजिल के बीच की ली है दूरियाँ समेट
अब मैं इतना हूँ ज़रूरी जैसे सूर्य का कैच
बुरा देखा बुरा सुना बुरा किया नहीं
काफिर हुआ माँ की दुआ तभी रुका नहीं
जितना लिया दुगना दिया किया गुनाह नहीं
सभी को प्यार सब के बिना हुआ पूरा नहीं
बुरा देखा बुरा सुना बुरा किया नहीं
काफिर हुआ माँ की दुआ तभी रुका नहीं
जितना लिया दुगना दिया किया गुनाह नहीं
सभी का प्यार सब के बिना हुआ पूरा नहीं
काफी बदल सा गया था मैं
राही भटक सा गया था मैं
हाँ जी अब सब कुछ ही कदमों में है
हो… राहें सूनी पड़ी थी
निगाहें शिखर पे अड़ी थी
पर बाद में अब लगता हम सपनों में हैं