तेरी मेरी मिली रहे अनजाने में
तक़दीर ये क्यों लिखी खुद रब जाने
तक़दीर ये क्यों लिखी खुद रब जाने
जो मिला है लगता है
धड़कन में है घुला
अब शायद सांसों में
शुरू होने को है चला
ये सिलसिला
तारों तले बातों का
उजली हुई रातों का
होने को है चला
ये सिलसिला
ताज़ी बुनी यादों का
दो ख्वाबों का सिलसिला
धागों सा उलझा ये फ़साना
आहिस्ता सुलझाना तुम फिलहाल
सिलने को है एक ताना-बाना
होने दो इस दिल को इस्तेमाल
नज़रों के शीशों में
चेहरा जो है खिला
अब शायद रूहों में
शुरू होने को है चला
ये सिलसिला
तारों तले बातों का
उजली हुई रातों का
होने को है चला
ये सिलसिला
अंबर के जैसा बेकरार
बेवकूफ़ सिलसिला