बेरंगे थे दिन, बेरंगी शामें
आई है तुमसे रंगीनिया
आई है तुमसे रंगीनिया
फीके थे लम्हें जीने में सारे
आई है तुमसे नमकीनिया
बे-इरादा रास्तों की
बन गये हो मंज़िलें
मुश्किलें हल हैं तुम्ही से
या तुम्ही हो मुश्किलें
तुम क्या मिले, तुम क्या मिले
हम ना रहे हम, तुम क्या मिले
जैसे मेरे दिल में खिले
फागुन के मौसम तुम क्या मिले
तुम क्या मिले, तुम क्या मिले
तुम क्या मिले, तुम क्या मिले
कोरे काग़ज़ों की ही तरह है
इश्क़ बिना जवानीयाँ
दर्ज़ हुई है शायरी में
जिनकी हैं प्रेम कहानियाँ
हम ज़माने की निगाहों में
कभी गुमनाम थे
अपने चर्चे कर रही हैं
अब शहर की महफिलें
तुम क्या मिले, तुम क्या मिले
हम ना रहे हम, तुम क्या मिले
जैसे मेरे, दिल में खिले
फागुन के मौसम, तुम क्या मिले
तुम क्या मिले, तुम क्या मिले
तुम क्या मिले, तुम क्या मिले