हर एक रोज़ तड़पते जाना
हिज्र की याद में
जल जल के पिघलते जाना
मैं तो अंजान था
तुमने ही सिखाया है मुझे
वक़्त के साथ
कैसे बदलते जाना
तेरी बेबाक नजरों से
उलझना भी जरूरी था
ज़रूरी थी मोहब्बत तो
समझना भी जरूरी था
क्या होता एक मंजिल के
मुसाफिर साथ ही रहते हैं
था तेरा रहना ज़ख्म तेरा जो
वो भरना भी जरूरी था
तेरी बेबाक नजरों से
उलझना भी जरूरी था
अभी तो साथ चलने में
सुकून तुमसे मिला ही था
मनने की जो रस्में थी
है बाकी रूठना भी था
शिक़ायत तुमको थी मुझसे
तो मुझसे थी गिला करते
जो आंसू बहना चाहते हो
नहीं उनको पिया करते
बताओ क्या ये लाज़िम था
तड़पते छोड़ कर जाना
सिल में वफ़ाओं के
तड़पना भी जरूरी था
तेरी बेबाक नजरों से
उलझना भी जरूरी था
जहां मिलते थे हम दोनों
वहां जाकर बहुत रोया
जिसे खोने से डरता था
वो आख़िर मैंने है खोया
तेरी तस्वीर देखूं तो
नहीं आता यकीन मुझको
मगर दो रूख है इस तस्वीर के
अब है यकीन मुझको
कहां तू मुझमें मौसम सा
यहां आया खाना बदला
मुझे तुमने ये सिखाया
बदलना भी जरूरी था
ज़रूरी थी मोहब्बत तो
समझना भी जरूरी था
तेरी बेबाक नजरों से
उलझना भी जरूरी था