jain bhakti songs lyrics in hindi

jain bhakti songs lyrics in hindi

तुम से लागी लगन पारस प्यारा | Jain Bhajan Lyrics

तुम से लागी लगन,
ले लो अपनी शरण, पारस प्यारा,
मेटो मेटो जी संकट हमारा ||

निशदिन तुमको जपूँ,
पर से नेह तजूँ, जीवन सारा,
तेरे चरणों में बीत हमारा ||टेक||

अश्वसेन के राजदुलारे,
वामा देवी के सुत प्राण प्यारे||
सबसे नेह तोड़ा,
जग से मुँह को मोड़ा,
संयम धारा ||
मेटो मेटो जी संकट हमारा ||

इंद्र और धरणेन्द्र भी आए,
देवी पद्मावती मंगल गाए ||
आशा पूरो सदा,
दुःख नहीं पावे कदा,
सेवक थारा ||
मेटो मेटो जी संकट हमारा ||

जग के दुःख की तो परवाह नहीं है,
स्वर्ग सुख की भी चाह नहीं है||
मेटो जामन मरण,
होवे ऐसा यतन,
पारस प्यारा ||
मेटो मेटो जी संकट हमारा ||

लाखों बार तुम्हें शीश नवाऊँ,
जग के नाथ तुम्हें कैसे पाऊँ ||
पंकज व्याकुल भया,
दर्शन बिन ये जिया लागे खारा ||
मेटो मेटो जी संकट हमारा ||

तुम से लागी लगन,
ले लो अपनी शरण, पारस प्यारा,
मेटो मेटो जी संकट हमारा ||

केसरिया, केसरिया, आज हमारो मन | Jain Bhajan Lyrics

केसरिया, केसरिया, आज हमारो मन
केसरिया, केसरिया, आज हमारो मन केसरिया ||

तन केसरिया, मन केसरिया, पूजा के चावल केसरिया,
भक्ति में हम सब केसरिया|| केसरिया…||

हम केसरिया, तुम केसरिया, अष्ट द्रव्य सब हैं केसरिया,
मंदिर की है ध्वजा केसरिया, भक्ति में हम सब केसरिया ||

इन्द्र केसरिया, इन्द्राणि केसरिया, सिद्धों की पूजन केसरिया,
पूजा के सब भाव केसरिया, भक्ति में हम सब केसरिया ||

वीर प्रभु की वाणी केसरिया, अहिंसा परमो धर्म केसरिया,
जीयो जीने दो केसरिया, भक्ति में हम सब केसरिया ||

पीछी केसरिया, कमण्डल केसरिया,दिगम्बर साधु भी केसरिया
शत शत वंदन है केसरिया, भक्ति में हम सब केसरिया ||

स्वर्णिम रथ देखो केसरिया, स्वर्ण वरण प्रभुजी केसरिया,
छत्र चंवर ध्वज सब केसरिया, भक्ति में हम सब केसरिया ||

जीवन है पानी की बूँद जैन भजन लिरिक्स

जीवन है पानी की बूँद कब मिट जाए रे
होनी अनहोनी कब क्या घाट जाए रे

जितना भी कर जाओगे, उतना ही फल पाओगे
करनी जो कर जाओगे, वैसा ही फल पाओगे
नीम के तरु में नहीं आम दिखाए रे
जीवन है पानी की बूँद…

चाँद दिनों का जीवन है, इसमें देखो सुख काम है
जनम सभी को मालूम है, लेकिन मृत्यु से ग़ाफ़िल है
जाने कब तन से पंक्षी उड़ जाए रे
जीवन है पानी की बूँद…

किस को मने अपना है, अपना भी तो सपना है
जिसके लिए माया जोड़ी क्या वो तेरा अपना है
तेरा हो बेटा तुझे आग लगाए रे
जीवन है पानी की बूँद…

गुरु जिस को छू लेते हैं वो कुंदन बन जाता है
तब तक सुलगता दावानल, वो सावन बन जाता है
आतंक का लोहा अब पारस कर ले रे
जीवन है पानी की बूँद…

पलके ही पलके हम बिछाएंगे | Jain Bhajan Lyrics

पलके ही पलके हम बिछाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे,
मीठे मीठे भजन सुनाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे ||
हम तो है गुरुवर के जन्मो से दीवाने,
पलके ही पलके हम बिछाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे ||

घर का कोना-कोना हमने फूलों से सजाया,
बंधनवार सजाई, घी का दीपक जलाया ||
भक्त जनों को हम बुलाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे,
पलके ही पलके हम बिछाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे ||

गंगाजल की धार से गुरु को न्हावन कराऊं,
भोग लगाऊं, लाड़ लड़ाऊं, आरती उतारू ||
खुशबू ही खुशबू हम उड़ाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे,
पलके ही पलके हम बिछाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे ||

अब तो एक ही लगन लगी है, प्रेमसुधा बरसा दो,
जनम जनम की मैली चादर, अपने रंग रंगा दो ||
जीवन को सफल बनाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे,
पलके ही पलके हम बिछाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे ||

पलके ही पलके हम बिछाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे,
मीठे मीठे भजन सुनाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे ||
हम तो है गुरुवर के जन्मो से दीवाने,
पलके ही पलके हम बिछाएंगे, जिस दिन मेरे गुरुवर घर आएंगे ||

पंखीडा ओ पंखींडा जैन भजन लिरिक्स

पंखीडा ओ पंखींडा, पंखीडा..

पंखीडा ओ पंखीडा, पंखीडा ओ पंखीडा
पंखीडा तू उडीने जाजे पालीताणा रे
आदेश्वर दादा ने मारो वंदन केजे रे…पंखीडा ओ पंखीडा

गामे गाम ना सोनीडा सहु वेला ही आवो रे
ओ मारे दादा रे माटे तमे मुकुट लावो रे
मुकुट लावो, सारा लावो, वेला आवो रे….आदेश्वर… पंखीडा ओ पंखीडा

पंखीडा तू उडीने जाजे शंखेश्वर रे
पार्श्वनाथ दादा ने म्हारे वंदन केजे रे…पंखीडा ओ पंखीडा
गामे-गाम ना मालीडा सहु बेला ही आवे रे
ओ मारा प्रभुजी रे माटे तमे फूलडा लावो रे
फूलडा लावो, हार लावो, वेळा ही आवो रे… पार्श्वनाथ… पंखीडा ओ पंखीडा

पंखीडा तू उडीने जाजे पावापुरी रे
महावीर स्वामी ने मारो वंदन केजे रे…पंखीडा ओ पंखीडा
गामे-गाम ना गवैय्या सहू वेला ही आवो रे
ओ म्हारा प्रभुजी ने माटे तमे गीतडा गावो रे
ढोलक लावो, पेटी लावो, तबला लावो रे… महावीर स्वामी… पंखीडा ओ पंखीडा

पारस जिनंदा मोरी | Jain Bhajan Lyrics

तर्ज : राग – कानड़ा

पारस जिनंदा मोरी,
अरज सुनीजे,
वामा देवी रा नंदा मोरी अरज सुनीजे ||
अर्ज सुनीजे दर्शन दीजे,
कृपा करीजे प्रभु मोपे,
सतगुरु ने बताया, जब ज्ञान में आया,
सत असत वही जानीजे
आ आ आ आ आ आ…

मोरी. कुगुरु कुदेव बहुत ही ध्याये
मोरी. कुगुरु कुदेव बहुत ही ध्याये
भव समुद्र में गोते खाये,
पार न पाया मैं तो शरण में आया,
मोरी चौरासी मिटा अब दीजे,
आ आ आ आ आ आ…

मैं जीवन प्रभु दास तिहारो
मैं जीवन प्रभु दास तिहारो
कृपा करी प्रभु मोहे उबारो,
प्रभु तुमरो मैं चाकर,
प्रभु तुम मेरे ठाकर,
चारों गति से बचाय अब लीजे,
आ आ आ आ आ आ…

तेरी शीतल शीतल मूरत लख | Jain Bhajan Lyrics

तर्ज : तेरी प्यारी प्यारी सूरत को ससुराल/Jain Bhajan Lyrics, जैन भजन लिरिक्स

तेरी शीतल शीतल मूरत लख,
कही भी नजर ना जमे, प्रभु शीतल ||
सूरत को निहारे पल पल तव छवि दूजी नजर ना जमे, प्रभु शीतल ||

भव दुख दाह सही है घोर कर्म बली पर चला न जोर,
तुम मुख चन्द्र निहार मिली अब,
परम शान्ति सुख शीतल ठोर,
निज पर का ज्ञान जगे घट में भव बंधन भीड़ थमे, प्रभु शीतल ||

तेरी शीतल शीतल. सकल ज्ञेय के ज्ञायक हो एक तुम्ही जग नायक हो,
वीतराग सर्वज्ञ प्रभु तुम निज स्वरूप शिवदायक हो,
‘सौभाग्य” सफल हो नर जीवन, गति पंचम धाम धमे, प्रभु शीतल ||

तेरी शीतल शीतल मूरत लख, कही भी नजर ना जमे, प्रभु शीतल ||
तेरी शीतल शीतल ……

तेरे दरशन से मेरा दिल खिल गया | Jain Bhajan Lyrics

Top 10 Jain Bhajan Lyrics | जैन भजन लिरिक्स
Jain Bhajan Lyrics, जैन भजन लिरिक्स

तर्ज : इक परदेशी मेरा दिल ले गया/Jain Bhajan Lyrics, जैन भजन लिरिक्स

तेरे दरशन से मेरा दिल खिल गया,
मुक्ति के महल का सुराज्य मिल गया ||
आतम के सुज्ञान का सुभान हो गया,
भव का विनाशी तत्वज्ञान हो गया ||

तेरी सच्ची प्रीत की यही है निशानी,
भोगों से छूट बने आतम सुध्यानी,
कर्मों की जीत का सुराज मिल गया,
मुक्ति के महल का सुराज्य मिल गया ||

तेरे तेरी परतीत हरे व्याधियाँ पुरानी,
जामन मरण हर दे शिवरानी, प्रभो सुख शान्ति सुमन आज खिल गया,
‘के’ मुक्ति के महल का सुराज्य मिल गया ||

तेरे दरशन से मेरा दिल खिल गया,
मुक्ति के महल का सुराज्य मिल गया ||

ज्ञानानंद अतुल धन राशि,
सिद्ध समान वरूँ अविनाशी,
यही सौभाग्य शिवराज मिल गया,
मुक्ति के महल का सुराज्य मिल गया ||||

तेरे दरशन से मेरा दिल खिल गया,
मुक्ति के महल का सुराज्य मिल गया ||

फूलो का तारो का सबका कहना है Jain Bhajan Lyrics

तर्ज – फूलो का तारो का सबका/Jain Bhajan Lyrics, जैन भजन लिरिक्स

फूलो का तारो का सबका कहना है,
एक हजारो मेंरे गुरुवर है,
सारी उमर गुरु की भक्ति करना है,
फूलो का तारो का सबका कहना हैं,
एक हजारो मेंरे गुरुवर है,
सारी उमर गुरु की भक्ति करना है,
फूलो का तारो का सबका कहना है||

ये ना जाना दुनिया ने,
गुरु भक्ति में है प्यार,
जो भी करता गुरु भक्ति,
वो हो जाता भव से पार,
आ गुरु के पास आ,
कुछ पुण्य कमाना है,
एक हजारो मेंरे गुरुवर है,
सारी उमर गुरु की भक्ति करना है,
फूलो का तारो का सबका कहना है||

भोली भाली समता की,
सूरत जैसा तू,
प्यारी प्यारी जादू की,
मूरत जैसा तू,
हम सभी भक्तो का,
यही तो कहना है,
एक हजारो मेंरे गुरुवर है,
सारी उमर गुरु की भक्ति करना है,
फूलो का तारो का सबका कहना है||

देखो गुरूवर हम सब है,
एक डाली के फूल,
सब कुछ भूल जाना,
हमको ना जाना भूल,
उनके चरणों में जीवन बिताना है,
एक हजारो मेंरे गुरुवर है,
सारी उमर गुरु की भक्ति करना है,
फूलो का तारो का सबका कहना है||

फूलो का तारो का सबका कहना है,
एक हजारो मेंरे गुरुवर है,
सारी उमर गुरु की भक्ति करना है,
फूलो का तारो का सबका कहना हैं,
एक हजारो मेंरे गुरुवर है,
सारी उमर गुरु की भक्ति करना है,
फूलो का तारो का सबका कहना है||

Jain Bhajan Lyrics, जैन भजन लिरिक्स

ओ गुरूसा जैन भजन लिरिक्स | Jain Bhajan Lyrics

ओ गुरूसा …थोरो चेलो बनु मै
ओ गुरूसा …थोरो चेलो बनु मै
हर पल तेरे साथ रहू मै
ओ गुरूसा थोरो चेलो बनु मैं,
की थोरो चेलो बनु मैं,
हर पल तेरे साथ रहू मै, ओ गुरूसा
ओ गुरूसा …थोरो चेलो बनु मै
ओ गुरूसा …थोरो चेलो बनु मै
हर पल तेरे साथ रहू मै

पहला ऋषभदेव जिनजी ने वोन्दू
पहला ऋषभदेव जिनजी ने वोन्दू
की चोविस्मा महावीर स्वामी देवन को ,
हर पल तेरे साथ रहू मैं
श्रावण का महीना होगा उसमे होगी राखी
श्रावण का महीना होगा उसमे होगी राखी

तू राखी तेरी डोर बनु मैं
तू राखी तेरी डोर बनु मैं
हर पल तेरे साथ रहू मैं , ओ गुरूसा
ओ गुरूसा …थोरो चेलो बनु मै

हर पल तेरे साथ रहू मै

अनंत चोवीसी ने नित उठ वोन्दू
अनंत चोवीसी ने नित उठ वोन्दू
वीस विहरमन देवन को , हर पल तेरे साथ रहू मैं
भदरवा महीना होगा उसमे होगी बारिश
भदरवा महीना होगा उसमे होगी बारिश

तू बादल तेरी बून्द बनु मैं
तू बादल तेरी बून्द बनु मैं
हर पल तेरे साथ रहू मैं , ओ गुरूसा
ओ गुरूसा …थोरो चेलो बनु मै
ओ गुरूसा …थोरो चेलो बनु मै
हर पल तेरे साथ रहू मै

ग्यारह गणधर जिनजी ने वोन्दू
ग्यारह गणधर जिनजी ने वोन्दू
तरण तारण गुरु देवन को ,
हर पल तेरे साथ रहू मैं
कार्तिक का महीना होगा उसमे होगी दीवाली
कार्तिक का महीना होगा उसमे होगी दीवाली

तू दीपक तेरी ज्योत बनु मैं
तू दीपक तेरी ज्योत बनु मैं
हर पल तेरे साथ रहू मैं , ओ गुरूसा
ओ गुरूसा …थोरो चेलो बनु मै
ओ गुरूसा …थोरो चेलो बनु मै
हर पल तेरे साथ रहू मै

सोलवा श्री शांतिनाथ जिनजी ने वोन्दू
सोलवा श्री शांतिनाथ जिनजी ने वोन्दू
तेविस्मा पार्श्वनाथ देवन को ,
हर पल तेरे साथ रहू मैं
फागुण का महीना होगा उसमे होगी होली
फागुण का महीना होगा उसमे होगी होली
तू पिचकारी तेरा रंग बनु मैं-2, ह
र पल तेरे साथ रहू मैं, ओ गुरूसा
ओ गुरूसा थोरो चेलो बनु मैं ,की थोरो चेलो बनु मैं
हर पल तेरे साथ रहू मैं , ओ गुरूसा

मेरी भावना : जैन पाठ | Jain Bhajan Lyrics

Top 10 Jain Bhajan Lyrics | जैन भजन लिरिक्स
Jain Bhajan Lyrics, जैन भजन लिरिक्स

जिसने राग-द्वेष कामादिक, जीते सब जग जान लिया
सब जीवों को मोक्ष मार्ग का निस्पृह हो उपदेश दिया,

बुद्ध, वीर जिन, हरि, हर ब्रह्मा या उसको स्वाधीन कहो
भक्ति-भाव से प्रेरित हो यह चित्त उसी में लीन रहो||||1||

विषयों की आशा नहीं जिनके, साम्य भाव धन रखते हैं
निज-पर के हित साधन में जो निशदिन तत्पर रहते हैं,

स्वार्थ त्याग की कठिन तपस्या, बिना खेद जो करते हैं
ऐसे ज्ञानी साधु जगत के दुख-समूह को हरते हैं||||2||

रहे सदा सत्संग उन्हीं का ध्यान उन्हीं का नित्य रहे
उन ही जैसी चर्या में यह चित्त सदा अनुरक्त रहे,

नहीं सताऊँ किसी जीव को, झूठ कभी नहीं कहा करूं
पर-धन-वनिता पर न लुभाऊं, संतोषामृत पिया करूं||||3||

अहंकार का भाव न रखूं, नहीं किसी पर खेद करूं
देख दूसरों की बढ़ती को कभी न ईर्ष्या-भाव धरूं,

रहे भावना ऐसी मेरी, सरल-सत्य-व्यवहार करूं
बने जहां तक इस जीवन में औरों का उपकार करूं||||4||

मैत्रीभाव जगत में मेरा सब जीवों से नित्य रहे
दीन-दुखी जीवों पर मेरे उरसे करुणा स्त्रोत बहे,

दुर्जन-क्रूर-कुमार्ग रतों पर क्षोभ नहीं मुझको आवे
साम्यभाव रखूं मैं उन पर ऐसी परिणति हो जावे||||5||

गुणीजनों को देख हृदय में मेरे प्रेम उमड़ आवे
बने जहां तक उनकी सेवा करके यह मन सुख पावे,

होऊं नहीं कृतघ्न कभी मैं, द्रोह न मेरे उर आवे
गुण-ग्रहण का भाव रहे नित दृष्टि न दोषों पर जावे||||6||

कोई बुरा कहो या अच्छा, लक्ष्मी आवे या जावे
लाखों वर्षों तक जीऊं या मृत्यु आज ही आ जावे||

अथवा कोई कैसा ही भय या लालच देने आवे||
तो भी न्याय मार्ग से मेरे कभी न पद डिगने पावे||||7||

होकर सुख में मग्न न फूले दुख में कभी न घबरावे
पर्वत नदी-श्मशान-भयानक-अटवी से नहिं भय खावे,

रहे अडोल-अकंप निरंतर, यह मन, दृढ़तर बन जावे
इष्टवियोग अनिष्टयोग में सहनशीलता दिखलावे||||8||

सुखी रहे सब जीव जगत के कोई कभी न घबरावे
बैर-पाप-अभिमान छोड़ जग नित्य नए मंगल गावे,

घर-घर चर्चा रहे धर्म की दुष्कृत दुष्कर हो जावे
ज्ञान-चरित उन्नत कर अपना मनुज-जन्म फल सब पावे||||9||

ईति-भीति व्यापे नहीं जगमें वृष्टि समय पर हुआ करे
धर्मनिष्ठ होकर राजा भी न्याय प्रजा का किया करे,

रोग-मरी दुर्भिक्ष न फैले प्रजा शांति से जिया करे
परम अहिंसा धर्म जगत में फैल सर्वहित किया करे||||10||

फैले प्रेम परस्पर जग में मोह दूर पर रहा करे
अप्रिय-कटुक-कठोर शब्द नहिं कोई मुख से कहा करे,

बनकर सब युगवीर हृदय से देशोन्नति-रत रहा करें
वस्तु-स्वरूप विचार खुशी से सब दुख संकट सहा करें||||11||

आलोचना-पाठ | Jain Bhajan Lyrics

बंदों पाँचों परम-गुरु, चौबीसों जिनराज||
करूँ शुद्ध आलोचना, शुद्धिकरन के काज || ||

सुनिये, जिन अरज हमारी, हम दोष किए अति भारी||
तिनकी अब निवृत्ति काज, तुम सरन लही जिनराज || ||

इक बे ते चउ इंद्री वा, मनरहित सहित जे जीवा||
तिनकी नहिं करुणा धारी, निरदई ह्वै घात विचारी || ||

समारंभ समारंभ आरंभ, मन वच तन कीने प्रारंभ||
कृत कारित मोदन करिकै, क्रोधादि चतुष्ट्‌य धरिकै|| ||

शत आठ जु इमि भेदन तै, अघ कीने परिछेदन तै||
तिनकी कहुँ कोलौं कहानी, तुम जानत केवलज्ञानी|| ||

विपरीत एकांत विनय के, संशय अज्ञान कुनयके||
वश होय घोर अघ कीने, वचतै नहिं जात कहीने|| ||

कुगुरुनकी सेवा कीनी, केवल अदयाकरि भीनी||
याविधि मिथ्यात भ्रमायो, चहुँगति मधि दोष उपायो|| ||

हिंसा पुनि झूठ जु चोरी, पर-वनितासों दृग जोरी||
आरंभ परिग्रह भीनो, पन पाप जु या विधि कीनो|| ||

सपरस रसना घ्राननको, चखु कान विषय-सेवनको||
बहु करम किए मनमाने, कछु न्याय-अन्याय न जाने|| ||

फल पंच उदंबर खाये, मधु माँस मद्य चित्त चाये||

दुइवीस अभख जिन गाये, सो भी निस दिन भुँजाये||
कछु भेदाभेद न पायो, ज्यों त्यों करि उदर भरायौ|| ||

अनंतानु जु बंधी जानो, प्रत्याख्यान अप्रत्याख्यानो||
संज्वलन चौकड़ी गुनिये, सब भेद जु षोडश मुनिये|| ||

परिहास अरति रति शोग, भय ग्लानि तिवेद संजोग||
पनवीस जु भेद भये इम, इनके वश पाप किये हम|| ||

निद्रावश शयन कराई, सुपने मधि दोष लगाई||
फिर जागि विषय-वन भायो, नानाविध विष-फल खायो|| ||

आहार विहार निहारा, इनमें नहिं जतन विचारा||
बिन देखी धरी उठाई, बिन सोधी बसत जु खाई|| ||

तब ही परमाद सतायो, बहुविधि विकल्प उपजायो||
कुछ सुधि बुधि नाहिं रही है, मिथ्या मति छाय गई है|| ||
मरजादा तुम ढिंग लीनी, ताहूँमें दोष जु कीनी||
भिन-भिन अब कैसे कहिये, तुम खानविषै सब पइये|| ||

हा हा! मैं दुठ अपराधी, त्रस-जीवन-राशि विराधी||
थावर की जतन ना कीनी, उरमें करुना नहिं लीनी|| ||

पृथ्वी बहु खोद कराई, महलादिक जागाँ चिनाई||
पुनि बिन गाल्यो जल ढोल्यो, पंखातै पवन बिलोल्यो|| ||

हा हा! मैं अदयाचारी, बहु हरितकाय जु विदारी||
तामधि जीवन के खंदा, हम खाये धरि आनंदा|| ||

हा हा! मैं परमाद बसाई, बिन देखे अगनि जलाई||
ता मधि जे जीव जु आये, ते हूँ परलोक सिधाये|| ||

बींध्यो अन राति पिसायो, ईंधन बिन सोधि जलायो||
झाडू ले जागाँ बुहारी, चिवंटा आदिक जीव बिदारी|| ||

जल छानी जिवानी कीनी, सो हू पुनि डार जु दीनी||
नहिं जल-थानक पहुँचाई, किरिया विन पाप उपाई|| ||
जल मल मोरिन गिरवायौ, कृमि-कुल बहु घात करायौ||
नदियन बिच चीर धुवाये, कोसन के जीव मराये|| ||

अन्नादिक शोध कराई, तामे जु जीव निसराई||
तिनका नहिं जतन कराया, गलियारे धूप डराया|| ||

पुनि द्रव्य कमावन काजै, बहु आरंभ हिंसा साजै||
किये तिसनावश अघ भारी, करुना नहिं रंच विचारी|| ||
इत्यादिक पाप अनंता, हम कीने श्री भगवंता||
संतति चिरकाल उपाई, बानी तैं कहिय न जाई|| ||

ताको जु उदय अब आयो, नानाविधि मोहि सतायो||
फल भुँजत जिय दुख पावै, वचतै कैसे करि गावै|| ||

तुम जानत केवलज्ञानी, दुख दूर करो शिवथानी||
हम तो तुम शरण लही है, जिन तारन विरद सही है|| ||
जो गाँवपति इक होवै, सो भी दुखिया दुख खोवै||
तुम तीन भुवन के स्वामी, दुख मेटहु अंतरजामी|| ||

द्रोपदि को चीर बढ़ायो, सीताप्रति कमल रचायो||
अंजन से किये अकामी, दुख मेटहु अंतरजामी||

मेरे अवगुन न चितारो, प्रभु अपनो विरद निम्हारो||
सब दोषरहित करि स्वामी, दुख मेटहु अंतरजामी|| ||

इंद्रादिक पद नहिं चाहूँ, विषयनि में नाहिं लुभाऊँ||
रागादिक दोष हरीजै, परमातम निज-पद दीजै|| ||

दोषरहित जिन देवजी, निजपद दीज्यो मोय||
सब जीवन को सुख बढ़ै, आनंद मंगल होय|| ||

अनुभव मानिक पारखी, ‘जौहरि’ आप जिनंद||
यही वर मोहि दीजिए, चरण-सरण आनंद||

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