best ghazal lyrics in hindi
तेरे आने की जब ख़बर महके / नवाज़ देवबंदी
तेरे आने की जब ख़बर महके
तेरे ख़ुशबू से सारा घर महके
शाम महके तेरे तसव्वुर से
शाम के बाद फिर सहर महके
रात भर सोचता रहा तुझको
ज़हन-ओ-दिल मेरे रात भर महके
याद आए तो दिल मुनव्वर हो
दीद हो जाए तो नज़र महके
वो घड़ी दो घड़ी जहाँ बैठे
वो ज़मीं महके वो शजर महके
होश वालों को ख़बर क्या / निदा फ़ाज़ली
होश वालों को ख़बर क्या बेख़ुदी क्या चीज़ है
इश्क़ कीजे फिर समझिए ज़िन्दगी क्या चीज़ है
उन से नज़रें क्या मिली रोशन फ़िज़ाएँ हो गईं
आज जाना प्यार की जादूगरी क्या चीज़ है
खुलती ज़ुल्फ़ों ने सिखाई मौसमों को शायरी
झुकती आँखों ने बताया मयकशी क्या चीज़ है
हम लबों से कह न पाये उन से हाल-ए-दिल कभी
और वो समझे नहीं ये ख़ामोशी क्या चीज़ है
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो / कैफ़ी आज़मी
तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो
क्या गम है जिसको छुपा रहे हो
आँखों में नमी, हँसी लबों पर
क्या हाल है क्या दिखा रहे हो
बन जायेंगे ज़हर पीते पीते
ये अश्क जो पिए जा रहे हो
जिन ज़ख्मों को वक़्त भर चला है
तुम क्यों उन्हें छेड़े जा रहे हो
रेखाओं का खेल है मुक़द्दर
रेखाओं से मात खा रहे हो
तुम को देखा तो ये ख़याल आया / जावेद अख़्तर
तुमको देखा तो ये ख़याल आया
ज़िन्दगी धूप तुम घना साया
आज फिर दिल ने इक तमन्ना की
आज फिर दिल को हमने समझाया
तुम चले जाओगे तो सोचेंगे
हमने क्या खोया हमने क्या पाया
हम जिसे गुनगुना नहीं सकते
वक़्त ने ऐसा गीत क्यों गाया
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो / सुदर्शन फ़ाकिर
ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो काग़ज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी
मुहल्ले की सबसे निशानी पुरानी
वो बुढ़िया जिसे बच्चे कहते थे नानी
वो नानी की बातों में परियों का डेरा
वो चहरे की झुरिर्यों में सदियों का फेरा
भुलाये नहीं भूल सकता है कोई
वो छोटी सी रातें वो लम्बी कहानी
कड़ी धूप में अपने घर से निकलना
वो चिड़िया वो बुलबुल वो तितली पकड़ना
वो गुड़िया की शादी में लड़ना झगड़ना
वो झूलों से गिरना वो गिर के सम्भलना
वो पीतल के छल्लों के प्यारे से तोहफ़े
वो टूटी हुई चूड़ियों की निशानी
कभी रेत के ऊँचे टीलों पे जाना
घरोंदे बनाना बना के मिटाना
वो मासूम चाहत की तस्वीर अपनी
वो ख़्वाबों खिलौनों की जागीर अपनी
न दुनिया का ग़म था न रिश्तों के बंधन
बड़ी खूबसूरत थी वो ज़िंदगानी
प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है / हस्तीमल हस्ती
प्यार का पहला ख़त लिखने में वक़्त तो लगता है
नए परिंदों को उड़ने में वक़्त तो लगता है
जिस्म की बात नहीं थी उन के दिल तक जाना था
लम्बी दूरी तय करने में वक़्त तो लगता है
गाँठ अगर लग जाए तो फिर रिश्ते हों या डोरी
लाख करें कोशिश खुलने में वक़्त तो लगता है
हम ने इलाज-ए-ज़ख़्म-ए-दिल तो ढूँड लिया लेकिन
गहरे ज़ख़्मों को भरने में वक़्त तो लगता है
हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी / निदा फ़ाज़ली
हर तरफ़ हर जगह बेशुमार आदमी
फिर भी तनहाईयों का शिकार आदमी
सुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआ
अपनी ही लाश का ख़ुद मज़ार आदमी
हर तरफ़ भागते दौड़ते रास्ते
हर तरफ़ आदमी का शिकार आदमी
रोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआ
हर नए दिन नया इंतज़ार आदमी
ज़िन्दगी का मुक़द्दर सफ़र दर सफ़र
आख़िरी साँस तक बेक़रार आदमी
आते आते मेरा नाम सा रह गया / वसीम बरेलवी
आपको देखकर देखता रह गया
क्या कहूँ और कहने को क्या रह गया (अज़ीज़ क़ैसी)
आते आते मिरा नाम सा रह गया
उस के होंटों पे कुछ काँपता रह गया
वो मेरे सामने ही गया और मैं
रास्ते की तरह देखता रह गया
झूट वाले कहीं से कहीं बढ़ गए
और मैं था कि सच बोलता रह गया
आँधियों के इरादे तो अच्छे न है
ये दिया कैसे जलता हुआ रह गया
अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो / मजाज़ लखनवी
अब मेरे पास तुम आई हो तो क्या आई हो?
मैने माना के तुम इक पैकर-ए-रानाई हो
चमन-ए-दहर में रूह-ए-चमन आराई हो
तलत-ए-मेहर हो फ़िरदौस की बरनाई हो
बिन्त-ए-महताब हो गर्दूं से उतर आई हो
मुझसे मिलने में अब अंदेशा-ए-रुसवाई है
मैंने खुद अपने किये की ये सज़ा पाई है
उन दिनों मुझ पे क़यामत का जुनूं तारी था
सर पे सरशारी-ओ-इशरत का जुनूं तारी था
माहपारों से मोहब्बत का जुनूं तारी था
शहरयारों से रक़ाबत का जुनूं तारी था
बिस्तर-ए-मखमल-ओ-संजाब थी दुनिया मेरी
एक रंगीन-ओ-हसीं ख्वाब थी दुनिया मेरी
क्या सुनोगी मेरी मजरूह जवानी की पुकार
मेरी फ़रियाद-ए-जिगरदोज़ मेरा नाला-ए-ज़ार
शिद्दत-ए-कर्ब में ड़ूबी हुई मेरी गुफ़्तार
मै के खुद अपने मज़ाक़-ए-तरब आगीं का शिकार
वो गुदाज़-ए-दिल-ए-मरहूम कहां से लाऊँ
अब मैं वो जज़्बा-ए-मासूम कहां से लाऊँ
हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते / गुलज़ार
हाथ छूटे भी तो रिश्ते नहीं छोड़ा करते
वक़्त की शाख़ से लम्हें नहीं तोड़ा करते
जिस की आवाज़ में सिलवट हो निगाहों में शिकन
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नहीं जोड़ा करते
शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा
जाने वालों के लिये दिल नहीं थोड़ा करते
लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो
ऐसी दरिया का कभी रुख़ नहीं मोड़ा करते